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भारत

सामान्य जानकारी

इस खंड में हमारे देश के विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर अतीत और वर्तमान में रहे महत्वपूर्ण व्यक्तियों के बारे में दी गई है। इसके साथ ही इस पेज पर वीरता पुरस्कारों से सम्मानित व्यक्तियों, नदियों और राजमार्गों के बारे में सामान्य भौगोलिक जानकारी और संविधान में महत्वपूर्ण संसोधन के बारे में जानकारी दी गई है।

          

भारत के बारे में जानकारी

  

भारत विश्‍व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है जिसमें बहुरंगी विविधता और समृद्ध सांस्‍कृतिक विरासत है। इसके साथ ही यह अपने-आप को बदलते समय के साथ ढ़ालती भी आई है। आज़ादी पाने के बाद भारत ने बहुआयामी सामाजिक और आर्थिक प्रगति की है। भारत कृषि में आत्‍मनिर्भर बन चुका है और अब दुनिया के सबसे औद्योगीकृत देशों की श्रेणी में भी इसकी गिनती की जाती है। विश्‍व का सातवां बड़ा देश होने के नाते भारत शेष एशिया से अलग दिखता है जिसकी विशेषता पर्वत और समुद्र ने तय की है और ये इसे विशिष्‍ट भौगोलिक पहचान देते हैं। उत्तर में बृहत् पर्वत श्रृंखला हिमालय से घिरा यह कर्क रेखा से आगे संकरा होता जाता है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर तथा दक्षिण में हिन्‍द महासागर इसकी सीमा निर्धारित करते हैं।

भारत की राष्‍ट्रीय पहचान के प्रतीक

इस खण्‍ड में आपको भारत की राष्‍ट्रीय पहचान के प्रतीकों का परिचय दिया गया है। यह प्रतीक भारतीय पहचान और विरासत का मूलभूत हिस्‍सा हैं।

विश्‍व भर में बसे विविध पृष्‍ठभूमियों के भारतीय इन राष्‍ट्रीय प्रतीकों पर गर्व करते हैं क्‍योंकि वे प्रत्‍येक भारतीय के हृदय में गौरव और देश भक्ति की भावना का संचार करते हैं।

भारत की राष्‍ट्रीय पहचान के प्रतीक

राज्यों और संघ शासित प्रदेशों के पहचान प्रतीक 



संस्‍कृति और विरासत

हमारे देश के बहु-सांस्‍कृतिक भण्‍डार और विश्‍वविख्‍यात विरासत के सतत् अनुस्‍मारक के रूप में भारतीय इतिहास के तीन हजार से अधिक वर्ष की जानकारी और अनेक सभ्‍यताओं के विषय में यहां बताया गया है। यहां के निवासी और उनकी जीवन शैलियां, उनके नृत्‍य और संगीत शैलियां, कला और हस्‍तकला जैसे अन्‍य अनेक तत्‍व भारतीय संस्‍कृति और विरासत के विभिन्‍न वर्ण प्रस्‍तुत किए गए हैं, जो देश की राष्‍ट्रीयता का सच्‍चा चित्र प्रस्‍तुत करते हैं। इस खण्‍ड में उन सभी तत्‍वों को शामिल किया गया है जो भारत की संस्‍कृति और विरासत के प्रतीक हैं।


विशेष स्‍मारक

  • ताजमहल

    संगमरमर में तराशी गई एक कविता। आकर्षण और भव्‍यता, अनुपम, ताजमहल पूरी दुनिया में अपनी प्रकार का एक ही है। एक महान शासक का अपनी प्रिय रानी के प्रति प्रेम का यह अद्भुत शाहकार है। बादशाह शाहजहां के सपनों को साकार करता यह स्‍मारक 1631 ए. डी. में निर्मित दुनिया के आश्‍चर्यों में से एक है। इसे बनाने में 22 वर्ष का समय लगा। इस अद्भुत मकबरे को पूरा करने में यमुना के किनारे लगभग 20 हजार लोगों ने जुट कर काम किया। ताजमहल का सबसे मनमोहक और सुंदर दृश्‍य पूर्णिमा की रात को दिखाई देता है।

    इतिहास

    संगमरमर के इस अद्भुत शाहकार का निर्माण श्रेय मुगल शासक शाहजहां को जाता है, जिन्‍होंने अपनी प्रिय पत्‍नी अर्जुमद बानो बेगम की याद में इस मकबरे को खड़ा कराया था, जिन्‍हें हम मुमताज़ महल के नाम से जानते हैं और इनकी मृत्‍यु ए एच 1040 (ए डी 1630) में हुई। अपने पति से उन्‍होंने अंतिम इच्‍छा व्‍यक्‍त की थी की उनकी याद में एक ऐसा मकबरा बनाया जाए जैसा दुनिया ने पहले कभी न देखा हो। इसलिए बादशाह शाहजहां ने परी लोक जैसी कहानियों में बताए गए संगमरमर के इस भवन का निर्माण कराने का निर्णय लिया। ताजमहल का निर्माण ए. डी. 1632 में शुरू हुआ और उसे बनाने का काम 1648 ए डी में पूरा हुआ। ऐसा कहा जाता है कि इस भवन को पूरा करने के लिए सत्रह वर्ष तक लगातार 20,000 लोग काम करते रहें और उनके रहने के लिए दिवंगत रानी के नाम पर मुमताज़ा बाद बनाया गया, जिसे अब ताज गंज कहते हैं और यह भी इसके नजदीक निर्मित किया गया था।

    अमानत खान शिराजी ताजमहल का केली ग्राफर था, उसका नाम ताज के द्वारा में से एक अंत में तराश कर लिखा गया है। कवि गयासु‍द्दीन ने मकबरे के पत्‍थर पर इबारतें लिखी हैं, जबकि इस्‍माइल खान अफरीदी ने टर्की से आकर इसके गुम्‍बद का निर्माण किया। मुहम्‍मद हनीफ मिस्त्रियों का अधीक्षक था। ताजमहल के डिज़ाइनर का नाम उस्‍ताद अहमद लाहौरी था। इसकी सामग्री पूरे भारत और मध्‍य एशिया से लाई गई तथा इस सामग्री को निर्माण स्‍थल तक लाने में 1000 हाथियों के बेड़े की सहायता ली गई। इसका केन्‍द्रीय गुम्‍बद 187 फीट ऊंचा है। इसका लाल सेंड स्‍टोन फतेहपुर सिकरी, पंजाब के जसपेर, चीन से जेड और क्रिस्‍टल, तिब्‍बत से टर्कोइश यानी नीला पत्‍थर, श्रीलंका से लेपिस लजुली और सेफायर, अरब से कोयला और कोर्नेलियन तथा पन्‍ना से हीरे लाए गए। इसमें कुल मिलाकर 28 प्रकार के दुर्लभ, मूल्‍यवान और अर्ध मूल्‍यवान पत्‍थर ताजमहल की नक्‍काशी में उपयोग किए गए थे। मुख्‍य भवन सामग्री, सफेद संगमरमर जिला नागौर, राजस्‍थान के मकराना की खानों से लाया गया था।

    प्रवेश द्वार

    ताजमहल का मुख्‍य प्रवेश दक्षिण द्वार से है। यह प्रवेश द्वार 151 फीट लम्‍बा और 117 फीट चौड़ा है तथा इसकी ऊंचाई 100 फीट है। यहां पर्यटक मुख्‍य प्रवेश द्वार के बगल में बने छोटे द्वारों से मुख्‍य परिसर में प्रवेश करते हैं।

    मुख्‍य द्वार

    यह मुख्‍य द्वार लाल सेंड स्‍टोन से बनाया हुआ 30 मीटर ऊंचाई का है। इस पर अरबी लिपि में कुरान की आयते तराशी गई हैं। इसके ऊपर छोटे गुम्‍बद के आकार का मंडप हिन्‍दु शैली का है और अत्‍यंत भव्‍य प्रतीत होता है। इस प्रवेश द्वार की एक मुख्‍य विशेषता यह है कि अक्षर लेखन यहां से समान आकार का प्रतीत होता है। इसे तराशने वालों ने इतनी कुशलता से तराशा है कि बड़े और लम्‍बे अक्षर एक आकार का होने जैसा भ्रम उत्‍पन्‍न करते हैं।

    यहां चार बाग के रूप में भली भांति तैयार किए गए 300 x 300 मीटर के उद्यान हैं जो पैदल रास्‍ते के दोनों ओर फैले हुए हैं। इसके मध्‍य में एक मंच है जहां से पर्यटक ताज की तस्‍वीरें ले सकते हैं।

    ताज संग्रहालय

    उपरोक्‍त उल्लिखित मंच की बांईं ओर ताज संग्रहालय है। मूल चित्रों में यहां उस बारीकी को देखा जा सकता है कि वास्‍तुकला में इस स्‍मारक की योजना किस प्रकार एबनाई। वास्‍तुकार ने यह भी अंदाजा लगाया था कि इस इमारत को बनने में 22 वर्ष का समय लगेगा। अंदरुनी हिस्‍से के आरेख इस बारीकी से कब्रों की स्थिति दर्शाते हैं कि कब्रों के पैर की ओर वाला हिस्‍सा दर्शकों को किसी भी कोण से दिखाई दे सके।

    मस्जिद और जवाब

    ताज की बांईं ओर लाल सेंड स्‍टोन से बनी हुई एक मस्जिद है। यह इस्‍लाम धर्म की एक आम बात है कि एक मकबरे के पास एक मस्जिद का निर्माण किया जाता है, क्‍योंकि इससे उस हिस्‍से को एक पवित्रता नीति है और पूजा का स्‍थान मिलता है। इस मस्जिद को अब भी शुकराने की नमाज़ के लिए उपयोग किया जाता है।

    ताज की दांईं ओर एक दम समान मस्जिद बनाई गई है और इसे जवाब कहते हैं। यहां नमाज़ अदा नहीं की जाती क्‍योंकि यह पश्चिम की ओर है अर्थात मक्‍का के विपरीत, जो मुस्लिमों का पवित्र धार्मिक शहर है। इसे सममिति बनाए रखने के लिए निर्मित कराया गया था।

    बाह्य सज्‍जा

    ताजमहल अपने आप में एक ऊंचे मंच पर बनाया गया है। इसकी नींव के प्रत्‍येक कोने से उठने वाली चार मीनारे मकबरे को पर्याप्‍त संतुलन देती हैं। ये मीनारे 41.6 मीटर ऊंची हैं और इन्‍हें जानबूझकर बाहर की ओर हल्‍का सा झुकाव दिया गया है ताकि भूकंप जैसे दुर्घटना में ये मकबरे पर न गिर कर बाहर की ओर गिरे। ताजमहल का विशाल काय गुम्‍बद असाधारण रूप से बड़े ड्रम पर टिका है और इसकी कुल ऊंचाई 44.41 मीटर है। इस ड्रम के आधार से शीर्ष तक स्‍तूपिका है। इसके कोणों के बावजूद केन्‍द्रीय गुम्‍बद मध्‍य में है। यह आधार और मकबरे पर पहुंचने का केवल एक बिंदु है, प्रवेश द्वार की ओर खुलने वाली दोहरी सीढियां। यहां अंदर जाने के लिए जूते निकालने होते हैं या आप जूतों पर एक कवर लगा सकते हैं जो इस प्रयोजन के लिए यहां उपस्थित कर्मचारियों द्वारा आपको दिए जाते हैं।

    ताज की अंदरुनी सज्‍जा

    इस मकबरे के अंदरुनी हिस्‍से में एक विशाल केन्‍द्रीय कक्ष, इसके तत्‍काल नीचे एक तहखाना है और इसके नीचे शाही परिवारों के सदस्‍यों की कब्रों के लिए मूलत: आठ कोनों वाले चार कक्ष हैं।

    इस कक्ष के मध्‍य में शाहजहां और मुमताज़महल की कब्रें हैं। शाहजहां की कब्र बांईं और और अपनी प्रिय रानी की कब्र से कुछ ऊंचाई पर है जो गुम्‍बद के ठीक नीचे स्थित है। मुमताज महल की कब्र संगमरमर की जाली के बीच स्थित है, जिस पर पर्शियन में कुरान की आयतें लिखी हैं। इस कब्र पर एक पत्‍थर लगा है जिस पर लिखा है मरकद मुनव्‍वर अर्जुमद बानो बेगम मुखातिब बह मुमताज महल तनीफियात फर्र सानह 1404 हिजरी (यहां अर्जुमद बानो बेगम, जिन्‍हें मुमताज़ महल कहते हैं, स्थित हैं जिनकी मौत 1904 ए एच या 1630 ए डी को हुई)।

    शाहजहां की कब्र पर पर्शियन में लिखा है - मरकद मुहताहर आली हजरत फिरदौस आशियानी साहिब - कुरान सानी सानी शाहजहां बादशाह तब सुराह सानह 1076 हिजरी (इस सर्वोत्तम उच्‍च महाराजा, स्‍वर्ग के निवासी, तारों मंडलों के दूसरे मालिक, बादशाह शाहजहां की पवित्र कब्र इस मकबरे में हमेशा फलती फूलती रहे, 1607 ए एच (1666 ए डी)) इस कब्र के ऊपर एक लैम्‍प है, जो जिसकी ज्‍वाला कभी समाप्‍त नहीं होती है। कब्रों के चारों ओर संगमरमर की जालियां बनी है। दोनों कब्रें अर्ध मूल्‍यवान रत्‍नों से सजाई गई हैं। इमारत के अंदर ध्‍वनि का नियंत्रण अत्‍यंत उत्तम है, जिसके अंदर कुरान और संगीतकारों की स्‍वर लहरियां प्रतिध्‍वनित होती रहती हैं। ऐसा कहा जाता है कि जूते पहनने से पहले आपको कब्र का एक चक्‍कर लगाना चाहिए ताकि आप इसे सभी ओर से निहार सकें।


  • बृहदेश्‍वर मंदिर - तंजौर

    ब़ृहदेश्‍वर मंदिर चोल वास्‍तुकला का शानदार उदाहरण है, जिनका निर्माण महाराजा राजा राज (985-1012.ए.डी.) द्वारा कराया गया था। इस मंदिर के चारों ओर सुंदर अक्षरों में नक्‍काशी द्वारा लिखे गए शिला लेखों की एक लंबी श्रृंखला शासक के व्‍यक्तित्‍व की अपार महानता को दर्शाते हैं।

    बृहदेश्‍वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक भवन है और यहां इन्‍होंने भगवान का नाम अपने बाद राज राजेश्‍वरम उडयार रखा है। यह मंदिर ग्रेनाइट से निर्मित है और अधिकांशत: पत्‍थर के बड़े खण्‍ड इसमें इस्‍तेमाल किए गए हैं, ये शिलाखण्‍ड आस पास उपलब्‍ध नहीं है इसलिए इन्‍हें किसी दूर के स्‍थान से लाया गया था। यह मंदिर एक फैले हुए अंदरुनी प्रकार में बनाया गया है जो 240.90 मीटर लम्‍बा ( पूर्व - पश्चिम) और 122 मीटर चौड़ा (उत्तर - दक्षिण) है और इसमें पूर्व दिशा में गोपुर के साथ अन्‍य तीन साधारण तोरण प्रवेश द्वार प्रत्‍येक पार्श्‍व पर और तीसरा पिछले सिरे पर है। प्रकार के चारों ओर परिवारालय के साथ दो मंजिला मालिका है।

    एक विशाल गुम्‍बद के आकार का शिखर अष्‍टभुजा वाला है और यह ग्रेनाइट के एक शिला खण्‍ड पर रखा हुआ है तथा इसका घेरा 7.8 मीटर और वज़न 80 टन है। उप पित और अदिष्‍ठानम अक्षीय रूप से रखी गई सभी इकाइयों के लिए सामान्‍य है जैसे कि अर्धमाह और मुख मंडपम तथा ये मुख्‍य गर्भ गृह से जुड़े हैं किन्‍तु यहां पहुंचने के रास्‍ता उत्तर - दक्षिण दिशा से अर्ध मंडपम से होकर निकालता है, जिसमें विशाल सोपान हैं। ढलाई वाला प्लिंथ विस्‍तृत रूप से निर्माता शासक के शिलालेखों से भरपूर है जो उनकी अनेक उपलब्धियों का वर्णन करता है, पवित्र कार्यों और मंदिर से जुड़ी संगठनात्‍मक घटनों का वर्णन करता है। गर्भ गृह के अंदर बृहत लिंग 8.7 मीटर ऊंचा है। दीवारों पर विशाल आकार में इनका चित्रात्‍मक प्रस्‍तुतिकरण है और अंदर के मार्ग में दुर्गा, लक्ष्‍मी, सरस्‍वती और भिक्षाटन, वीरभद्र कालांतक, नटेश, अर्धनारीश्‍वर और अलिंगाना रूप में शिव को दर्शाया गया है। अंदर की ओर दीवार के निचले हिस्‍से में भित्ति चित्र चोल तथा उनके बाद की अवधि के उत्‍कृष्‍ट उदाहरण है।

    उत्‍कृष्‍ट कलाओं को मंदिरों की सेवा में प्रोत्‍साहन दिया जाता था, शिल्‍पकला और चित्रकला को गर्भ गृह के आस पास के रास्‍ते में और यहां तक की महान चोल ग्रंथ और तमिल पत्र में दिए गए शिला लेख इस बात को दर्शाते हैं कि राजाराज के शासनकाल में इन महान कलाओं ने कैसे प्रगति की।

    सरफौजी, स्‍थानीय मराठा शासक ने गणपति मठ का दोबारा निर्माण कराया। तंजौर चित्रकला के जाने माने समूह नायकन को चोल भित्ति चित्रों में प्रदर्शित किया गया है।

  • आगरे का किला


  • आगरे का किला

    ताजमहल के उद्यानों के पास महत्‍वपूर्ण 16 वीं शताब्‍दी का मुगल स्‍मारक है, जिसे आगरे का लाल किला कहते हैं। यह शक्तिशाली किला लाल सैंड स्‍टोन से बना है और 2.5 किलोमीटर लम्‍बी दीवार से घिरा हुआ है, यह मुगल शासकों का शाही शहर कहा जाता है। इस किले की बाहरी मजबूत दीवारें अंदर एक स्‍वर्ग को छुपाए हुए हैं। इसमें अनेक विशिष्‍ट भवन हैं जैसे मोती मस्जिद - सफेद संगमरमर से बनी एक मस्जिद, जो एक त्रुटि रहित मोती जैसी है; दीवान ए आम, दीवान ए खास, मुसम्‍मन बुर्ज - जहां मुगल शासक शाह जहां की मौत 1666 ए. डी. में हुई, जहांगीर का महल और खास महल तथा शीश महल। आगरे का किला मुगल वास्‍तुकला का उत्‍कृष्‍ट उदाहरण है, यह भारत में यूनेस्‍को के विश्‍व विरासत स्‍थलों में से एक है।

    आगरे के किले का निर्माण 1656 के आस पास शुरु हुआ, जब आरंभिक संरचना मुगल बादशाह अकबर ने निर्मित कराई, इसके बाद का कार्य उनके पोते शाह जहां ने कराया, जिन्‍होंने किले में सबसे अधिक संगमरमर लगवाया। यह किला अर्ध चंद्राकार, पूर्व दिशा में चपटा है और इसकी एक सीधी, लम्‍बी दीवार नदी की ओर जाती है। इस पर लाल सैंड स्‍टोन के दोहरे प्राचीर बने हैं, जिन पर नियमित अंतराल के बाद बेस्‍टन बनाए गए है। बाहरी दीवार के आस पास 9 मीटर चौड़ी मोट है। एक आगे बढ़ती 22 मीटर ऊंची अंदरुनी दीवार अपराजेय प्रतीत होती है। किले की रूपरेखा नदी के प्रवाह की दिशा में निर्धारित होती है, जो उन दिनों इसके बगल से बहती थी। इस का मुख्‍य अक्ष नदी के समानान्‍तर है और दीवारें शहर की ओर हैं।

    इस किले में मूलत: चार प्रवेश द्वार थे, जिनमें से दो को आगे चलकर बंद कर दिया गया। आज दर्शकों को अमर सिंह गेट से प्रवेश करने की अनुमति है। जहांगीर महल पहला उल्‍लेखनीय भवन है जो अमर सिंह प्रवेश द्वार से आने पर अतिथि सबसे पहले देखते हैं। जहांगीर अकबर का बेटा था और वह मुगल सिंहासन का उत्तराधिकारी भी था। जहांगीर महल का निर्माण अकबर ने महिलाओं के लिए कराया था। यह पत्‍थरों का बना हुआ है और इसकी बाहरी सजावट सादगी वाली है। पत्‍थर के बड़े बाउल पर सजावटी पर्शियन पच्‍चीकारी की गई है, जो संभवतया सुगंधित गुलाब जल को रखने के लिए बनाया गया था। अकबर ने जहांगीर महल के पास अपनी मनपसंद रानी जोधा बाई के लिए एक महल का निर्माण भी कराया था।

    शाहजहां द्वार निर्मित पूरी तरह से संगमरमर का बना हुआ खास महल विशिष्‍ट इस्‍लामिक - पर्शियन विशेषताओं का प्रदर्शन करता है। इनके साथ हिन्‍दु विशेषताओं की एक अद्भुत श्रृंखला भी मिश्रित की गई है जैसे कि छतरियां। इसे बादशाह का सोने का कमरा या आरामगाह माना जाता है। खास महल में सफेद संगमरमर की सतह पर चित्र कला का सबसे सफल उदाहरण दिया गया है। खास महल की बांईं ओर मुसम्‍मन बुर्ज है जिसका निर्माण शाहजहां ने कराया था। यह सुंदर अष्‍टभुजी स्‍तंभ एक खुले मंडप के साथ है। इसका खुलापन, ऊंचाइयां और शाम की ठण्‍डी हवाएं इसकी कहानी कहती है। यही वह स्‍थान है जहां शाहजहां ने ताज को निहारते हुए अंतिम सांसें ली थी।

    शीश महल या कांच का बना हुआ महल हमाम के अंदर सजावटी पानी की अभियांत्रिकी का उत्‍कृ‍ष्‍टतम उदाहरण है। ऐसा माना जाता है कि हरेम या कपड़े पहनने का कक्ष और इसकी दीवारों में छोटे छोटे शीशे लगाए गए थे जो भारत में कांच मोजेक की सजावट का सबसे अच्‍छा नमूना है। शाह महल के दांईं ओर दीवान ए खास है, जो निजी श्रोताओं के लिए है। यहां बने संगमरमर के खम्‍भों में सजावटी फूलों के पैटर्न पर अर्ध कीमती पत्‍थर लगाए गए हैं। इसके पास मम्‍मम ए शाही या शाह बुर्ज को गरमी के मौसम में उपयोग किया जाता था।

    दीवान ए आम का उपयोग प्रसिद्ध मयूर सिंहासन को रखने में किया जाता था, जिसे शाहजहां द्वारा दिल्‍ली राजधानी ले जाने पर इसे लालकिले में ले जाया गया। यह सिंहासन सफेद संगमरमर से बना हुआ उत्‍कृष्‍ट कला का नमूना है। नगीना मस्जिद का निर्माण शाहजहां ने कराया था, जो दरबार की महिलाओं के लिए एक निजी मस्जिद थी। मोती मस्जिद आगरा किले की सबसे सुंदर रचना है। यह भवन वर्तमान में दर्शकों के लिए बंद किया गया है। मोती मस्जिद के पास मीना मस्जिद है, जिसे शाहजहां ने केवल अपने निजी उपयोग के लिए निर्मित कराया था।


  • गेटवे ऑफ इंडिया

    गेटवे ऑफ इंडिया अब मुम्‍बई शहर का पर्यायवाची बन गया है। यह मुम्‍बई का सबसे अधिक प्रसिद्ध स्‍मारक है और यह शहर में पर्यटन की दृष्टि से आने वाले अधिकांश लोगों का आरंभिक बिन्‍दु है। गेटवे ऑफ इंडिया एक महान ऐतिहासिक स्‍मारक है, जिसे देश में ब्रिटिश राज के दौरान निर्मित कराया गया था। यह पंचम किंग जॉर्ज और महारानी मेरी के मुम्‍बई (तत्‍कालीन बंबई) आगमन के अवसर पर उन्‍हें सम्‍मानित करने के लिए बनाया गया विशाल स्‍मारक था। गेटवे ऑफ इंडिया का निर्माण अपोलो बंदर पर कराया गया था जो मेल जोल का एक लोकप्रिय स्‍थान है। इसे ब्रिटिश वास्‍तुकार जॉर्ज विटेट ने डिजाइन किया था।

    गेटवे ऑफ इंडिया की आशाशिला बम्‍बई (मुम्‍बई) के राज्‍य पाल द्वारा 31 मार्च 1913 को रखी गई थी। यह स्‍मारक 26 मीटर ऊंचा है और इसने 4 मीनारें हैं और पत्‍थरों पर खोदी गई बारीक पच्‍चीकारी है। इसका केवल गुम्‍बद निर्मित करने में 21 लाख रु. का खर्च आया था। यह भारतीय - सार्सैनिक शैली में निर्मित भवन है, जबकि इसकी वास्‍तुकला में गुजराती शैली का भी कुछ प्रभाव दिखाई देता है। यह संरचना अपने आप में ही अत्‍यंत मनमोहक और पेरिस में स्थित आर्क डी ट्रायम्‍फ की प्रतिकृति है।

    पिछले समय में गेटवे ऑफ इंडिया का उपयोग पश्चिम से आने वाले अतिथियों के लिए आगमन बिन्‍दु के रूप में होता था। विडम्‍बना यह है कि जब 1947 में ब्रिटिश राज समाप्‍त हुआ तो यह उप निवेश का प्रतीक भी एक प्रकार का स्‍मृति लेख बन गया, जब ब्रिटिश राज का अंतिम जहाज यहां से इंग्‍लैंड की ओर रवाना हुआ। आज यह उपनिवेश काल का संकेत पूरी तरह से भारतीय कृत हो गया है, जिसमें ढेरों स्‍थानीय पर्यटक और नागरिक आते हैं। मुम्‍बई का यह स्‍थान शहर के दर्शनीय स्‍थलों में से एक है।

    गेटवे विशाल अरब सागर की ओर बनाया गया है, जो मुम्‍बई शहर के एक अन्‍य आकर्षण मेरिन ड्राइव से जुड़ा है, यह एक सड़क है जो समुद्र के समानांतर चलती है। यह भव्‍य स्‍मारक रात के समय देखने योग्‍य होता है जब इसकी विशाल भव्‍यता समुद्र की पृष्‍ठभूमि में दिखाई देती है। इसमें प्रतिवर्ष दुनिया भर के लाखों लोग आते हैं और यह मुम्‍बई के लोगों की जिंदगी का एक महत्‍वपूर्ण स्‍थान है, क्‍योंकि यह शहर की संस्‍कृति को परिभाषित करता है, जो ऐतिहासिक और आधुनिक सांस्‍कृतिक परिवेश का अनोखा संगम है।



  • महाबोधि मंदिर संकुल, बोध गया

    बोध गया में स्थित महाबोधि मंदिर का संकुल भारत के पूर्वोत्तर भाग में बिहार राज्‍य का मध्‍य हिस्‍सा है। यह गंगा नदी के मैदानी भाग में मौजूद है। महाबोधि मंदिर बुद्ध भुगवान की ज्ञान प्राप्ति के स्‍थान पर स्थित है। बिहार महात्‍मा बुद्ध के जीवन से संबंधित चार पवित्र स्‍थानों से एक है और यह विशेष रूप से उनके ज्ञान बोध की प्राप्ति से जुड़ा हुआ है।

    प्रथम मंदिर तीसरी शताब्‍दी बी. सी. में सम्राट अशोक द्वारा निर्मित कराया गया था और वर्तमान मंदिर पांचवीं या छठवीं शताब्‍दी में बनाए गए। यह ईंटों से पूरी तरह निर्मित सबसे प्रारंभिक बौद्ध मंदिरों में से एक है जो भारत में गुप्‍त अवधि से अब तक खड़े हुए हैं। महाबोधि मंदिर का स्‍थल महात्‍मा बुद्ध के जीवन से जुड़ी घटनाओं और उनकी पूजा से संबंधित तथ्‍यों के असाधारण अभिलेख प्रदान करते हैं, विशेष रूप से जब सम्राट अशोक ने प्रथम मंदिर का निर्माण कराया और साथ ही कटघरा और स्‍मारक स्‍तंभ बनवाया। शिल्‍पकारी से बनाया गया पत्‍थर का कटघरा पत्‍थर में शिल्‍पकारी की प्रथा का एक असाधारण शुरूआती उदाहरण है।

  • सेंट केथेड्रल

    गोवा की सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित धार्मिक इमारतों में से यह भव्‍य 16वीं शताब्‍दी का स्‍मारक है, जिसे पुर्तगाल शासन के दौरान रोमन केथोलिक द्वारा बनाया गया था। यह एशिया का सबसे बड़ा चर्च है। यह केथेड्रल एलेक्‍सेंड्रिया के सेंट केथेरिन को समर्पित है, जिनके भोज्‍य दिवस पर 1510 में अल्‍फोंसो अल्‍बूकर्क ने मुस्लिम सेना को पराजित किया और गोवा शहर का स्‍वामित्‍व लिया। अत: इसे सेंट केथेरिन का केथेड्रल भी कहते हैं और यह पुर्तगाल में बने किसी भी चर्च से बड़ा है।

    इस केथेड्रल को पुर्तगाली वाइसराय, रिडोंडो ने ''पुर्तगाल के एक विशाल चर्च, जहां संपत्ति, शक्ति और प्रसिद्धि हो, एक ऐसे रूप में स्‍थापित किया था, जो अटलांटिक से प्रशांत महासागर त‍क समुद्र पर कब्‍जा कर सके। इसके विशाल मुक्‍त द्वार का निर्माण 1562 में राजा डोम सेबास्टियो (1557-78) और इसे 1619 में काफी हद तक पूरा‍ किया गया था। यह 1640 में इसे अर्पित किया गया था।

    यह चर्च 250 फीट लंबा और 181 फीट चौड़ा है। इसका अगला हिस्‍सा 115 फीट ऊंचा है। यह भवन पुर्तगाली - गोथिक शैली में टस्‍कन बाह्य सज्‍जा तथा कोरिंथयन अंदरुनी सज्‍जा के साथ बनाया गया है। केथेड्रल का बाह्य हिस्‍सा शैली की सादगी के लिए उल्‍लेखनीय है, जबकि इसकी अंदरुनी सजावट अपनी सुंदर भव्‍यता से दर्शकों का मन मोह लेती है।

    केथेड्रल के स्‍तंभ गृह में प्रसिद्ध घंटा है जो गोवा में सबसे बड़ा तथा विश्‍व में एक सर्वोत्तम कृति माना जाता है, जिसे बहुधा अपनी शानदार आवाज के लिए ''स्‍वर्ण घंटी'' कहा जाता है। यहां मुख्‍य पूजा स्‍थल अलेक्सेंड्रिया के सेंट केथेरिन को समर्पित है और यहां दोनों ओर लगी तस्‍वीरें उनके जीवन तथा निर्माण के दृश्‍य प्रदर्शित करती हैं।

    नेव की दांईं ओर चमत्‍कारों का चेपल ऑफ क्रॉस बना हुआ है। ईसा मसीह की एक झलक इस विशाल, सादे क्रॉस पर 1919 में प्रकट होने का उल्‍लेख है। मुख्‍य पूजा गृह में विशाल सोने का आवरण चढ़े हुए वेदी पटल हैं। सेंट केथेरिन के जीवन के दृश्‍य, जिन्‍हें यह केथेड्रल समर्पित है, इसके 6 मुख्‍य पैनलों पर तराशे गए हैं। बांईं ओर के कक्ष में 1532 के दौरान बपतिस्‍मा के अक्षर बनाए गए हैं। सेंट फ्रांसीस जेवियर के बारे में कहा जाता है कि इसे इबारत को पढ़ कर उन्‍होंने हजारों गोवावासियों का बपतिस्‍मा किया है।

    यहां दुनिया भर से हजारों -लाखों लोग आते हैं और इस चर्च को सभी धर्मों के लोगों द्वारा एक धार्मिक स्‍थल माना जाता है। यह गोवा का एक अपरिहार्य पर्यटक आकर्षण है और गोवा जाने पर से' केथेड्रल को देखें बिना वापस आना यात्रा को अधूरा माना जाता है।

  • विक्‍टोरिया मेमोरियल

    विक्‍टोरिया मेमोरियल कोलकाता के प्रसिद्ध और सुंदर स्‍मारकों में से एक है। इसका निर्माण 1906 और 1921 के बीच भारत में रानी विक्‍टोरिया के 25 वर्ष के शासन काल के पूरा होने के अवसर पर किया गया था। वर्ष 1857 में सिपाहियों की बगावत के बाद ब्रिटिश सरकार ने देश के नियंत्रण का कार्य प्रत्‍यक्ष रूप से ले लिया और 1876 में ब्रिटिश संसद ने विक्‍टोरिया को भारत की शासक घो‍षित किया। उनका कार्यकाल 1901 में उनकी मृत्‍यु के साथ समाप्‍त हुआ।



राज्य/संघ राज्य क्षेत्र

राज्यों का एक संघ, भारत एक प्रभुसत्ता सम्पन्न, धर्मनिरेपक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य है जिसमें संसदीय प्रणाली की सरकार है। राष्ट्रपति इस संघ की कार्यकारिणी का संवैधानिक प्रमुख है। राज्यों में सरकार की प्रणाली केन्द्र की प्रणाली से बिल्कुल मेल खाती है। देश में 28 राज्य और 8 संघ राज्य क्षेत्र हैं। संघ राज्य क्षेत्रों को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए गए प्रशासक के माध्यम से प्रशासित किया जाता है। भारत के बड़े से लेकर छोटे राज्य और संघ राज्य क्षेत्र की जनसांख्यिकीय, इतिहास और संस्कृति, वेश-भूषा, त्यौहार, भाषा आदि विचित्र है। यह खण्ड आपको देश के विभिन्न राज्यों/संघ राज्य-क्षेत्रों से परिचित कराता है और आपको उनकी शानदार विचित्रताओं को जानने के लिए प्रेरित करता है।

 

भारत के जिले

भारत बहुरंगी विविधता और सांस्‍कृतिक विरासत के साथ सबसे पुरानी सभ्‍यताओं में से एक है। भारत में 718 जिले हैं जिनका प्रशासन संबंधित राज्‍य/संघ राज्‍य क्षेत्र सरकारों द्वारा किया जाता है। भारत के जिले एनआईसी द्वारा भारत के सभी जिलों की जानकारी वेब के एक ही स्‍थान पर एक स्रोत के रूप में प्रदान करने के प्रयास के रूप में तैयार किया गया है। इस पोर्टल पर आएं, जो किसी भी जिले के बारे में वहां के क्षेत्रफल, जनसंख्‍या और मुख्‍यालय की सभी जानकारियां प्रदान करता है।

यहां हम आपको जीआईएस आधारित वेबसाइट पर जनसांख्यिकी तथा सुविधाओं का ग्राम स्‍तरीय मानचित्रण प्रदान कर रहे हैं। इससे आप 160 से अधिक प्राचलों के लिए प्राथमिक जनगणना सारांश 2001 और भारत के महा पंजीयक द्वारा प्रदान किए गए सुविधाओं के आंकड़ों के साथ ग्रामीण भारत के क्षेत्रीय भूगोल के नक्‍शे का तत्‍काल उत्‍पादन कर सकते हैं। इसके अलावा हम आपको भारतीय सर्वेक्षण, की वेबसाइट के साथ भी जोड़ रहे हैं जो सर्वेक्षण संबंधित सभी मामलों अर्थात जियोडेसी, फोटोग्रा‍मेट्री, मानचित्रण और मानचित्र पुन:उत्‍पादन पर भारत सरकार के सलाहकार के रूप में कार्य करता है। इस लिंक की सहायता से आप देश के किसी भी राज्‍य और जिले के मानचित्रण तक पहुंच सकते हैं।




मेरा भारत मेरी शान

भारत दुनियां की सबसे पुरानी सभ्‍यताओं में से एक हैं, जो 4,000 से अधिक वर्षों से चली आ रही है और जिसने अनेक रीति-रिवाजों और परम्‍पराओं का संगम देखा है। यह देश की समृद्ध संस्‍कृति और विरासत का परिचायक है।

राष्‍ट्र के इतिहास में उपनिवेशवाद से उबरते एक देश से लेकर 50 वर्षों के अंदर वैश्चिक परिदृश्‍य में एक अग्रणी अर्थव्‍यवस्‍था तक के विकास में उदारता की झलकें दिखाई देती है। लोगों में इन सबसे बढकर राष्‍ट्रीयता की भावना इस विकास के योगदान में सक्रिय रही है। राष्‍ट्र का यह विकसित होता रूप देश और दुनियां में प्रत्‍येक भारतीय के मन में राष्‍ट्रीय गर्व की भावना उत्‍पन्‍न करता है और यह खण्‍ड इसी भावना को सदैव आगे बढाने का एक विनम्र प्रयास है।



भारत रत्‍न सम्‍मान

भारत में अन्‍नत काल से बहादुरी की अनेक गाथाओं को जन्‍म दिया है। संभवत: उनके बलिदानों को मापने का कोई पैमाना नहीं है, यद्यपि हम उन लोगों से भी अपनी आंखें फेर नहीं सकते जिन्‍होंने अपने-अपने क्षेत्रों में उत्‍कृ‍ष्‍टता प्राप्‍त कर हमारे देश का गौरव बढ़ाया है और हमें अंतरराष्‍ट्रीय मान्‍यता दिलाई है। भारत रत्‍न हमारे देश का उच्‍चतम नागरिक सम्‍मान है, जो कला, साहित्‍य और विज्ञान के क्षेत्र में असाधारण सेवा के लिए तथा उच्‍चतम स्‍तर की लोक सेवा को मान्‍यता देने के लिए प्रदान किया जाता है। यह भी अनिवार्य नहीं है कि भारत रत्‍न सम्‍मान हर वर्ष दिया जाए।

इस पुरस्‍कार के रूप में दिए जाने वाले सम्‍मान की मूल विशिष्टि में 35 मिलिमीटर व्‍यास वाला गोलाकार स्‍वर्ण पदक, जिस पर सूर्य और ऊपर हिन्‍दी भाषा में ''भारत रत्‍न'' तथा नीचे एक फूलों का गुलदस्‍ता बना होता है पीछे की ओर शासकीय संकेत और आदर्श-वाक्‍य लिखा होता है। इसे सफेद फीते में डालकर गले में पहनाया जाता है। एक वर्ष बाद इस डिजाइन को बदल दिया गया था।

भारत रत्‍न पुरस्‍कार की परम्‍परा 1954 में शुरु हुई थी। सबसे पहला पुरस्‍कार प्रसिद्ध वैज्ञानिक चंद्र शेखर वेंकटरमन को दिया गया था। तब से अनेक विशिष्‍ट जनों को अपने-अपने क्षेत्र में उत्‍कृष्‍टता पाने के लिए यह पुरस्‍कार प्रस्‍तुत किया गया है। वास्‍तव में हमारे पूर्व राष्‍ट्रपति, डॉ. ए. पी. जे. अब्‍दुल कलाम को भी यह प्रतिष्ठित पुरस्‍कार दिया गया है (1997)। इसका कोई लिखित प्रावधान नहीं है कि भारत रत्‍न केवल भारतीय नागरिकों को ही दिया जाए। यह पुरस्‍कार स्‍वाभाविक रूप से भारतीय नागरिक बन चुकी एग्‍नेस गोंखा बोजाखियू, जिन्‍हें हम मदर टेरेसा के नाम से जानते है और दो अन्‍य गैर-भारतीय - खान अब्‍दुल गफ्फार खान और नेल्‍सन मंडेला (1990)। 2009 में यह पुरस्कार प्रसिद्ध भारतीय गायक पंडित भीमसेन गुरूराज जोशी को प्रदान किया गया था। 4 फरवरी 2014 को नई दिल्ली में भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा प्रसिद्ध क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर एवं प्रख्यात वैज्ञानिक प्रो सीएनआर राव को भारत-रत्न से सम्मानित किया गया।


आप भी भारत रत्न पाने वाले व्यक्तियों की पूरी सूची देख सकते हैं।

भारत रत्‍न सम्‍मान प्राप्‍त करते हुए सचिन तेंदुलकर
भारत रत्‍न सम्‍मान प्राप्‍त करते हुए प्रो सीएनआर राव

स्रोत: राष्‍ट्रीय पोर्टल विषयवस्‍तु प्रबंधन दल



परम वीर चक्र (पीवीसी)

परम वीर चक्र सैन्य सेवा तथा उससे जुड़े हुए लोगों को दिया जाने वाला भारत का सर्वोच्च वीरता सम्मान है। यह पदक शत्रु के सामने अद्वितीय साहस तथा परम शूरता का परिचय देने पर दिया जाता है। 26 जनवरी 1950 से शुरू किया गया यह पदक मरणोपरांत भी दिया जाता है।

शाब्दिक तौर पर परम वीर चक्र का अर्थ है "वीरता का चक्र" । संस्कृति के शब्द "परम", "वीर" एवं "चक्र" से मिलकर यह शब्द बना है।

यदि कोई परम वीर चक्र विजेता दोबारा शौर्यता का परिचय देता है और उसे परम वीर चक्र के लिए चुना जाता है तो इस स्थिति में उसका पहला चक्र निरस्त करके उसे रिबैंड दिया जाता है। इसके बाद हर बहादुरी पर उसके रिबैंड बार की संख्या बढ़ाई जाती है। इस प्रक्रिया को मरणोपरांत भी किया जाता है। प्रत्येक रिबैंड बार पर इंद्र के वज्र की प्रतिकृति बनी होती है, तथा इसे रिबैंड के साथ ही लगाया जाता है।

परम वीर चक्र को अमेरिका के सम्मान पदक तथा यूनाइटेड किंगडम के विक्टोरिया क्रॉस के बराबर का दर्जा हासिल है।

फ्लाईंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखो यह प्रतिष्ठित सम्मान पाने वालों में से एक हैं। उन्हें 1971 में मरणोपरांत परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया। वे भारतीय वायु सेना के एकमात्र ऐसे ऑफिसर है जिन्हें परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया है।